नई दिल्ली। आज है शनि जयंती है, नवग्रहों में शनि को वैसे तो सबसे ज्यादा क्रूर और पापग्रह माना जाता है, लेकिन शनि के कारण ही व्यक्ति को प्रबल राजयोग भी मिलता है। शनि ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देकर रंक से राजा और राजा से रंक बनाने की शक्ति रखता है। इसीलिए लोग शनि से भयभीत रहते हैं। शनि ग्रह से सैकड़ों शुभ-अशुभ योग बनते हैं।
आइए जानते हैं वैदिक ज्योतिष में शनि से जुड़े कुछ प्रमुख शुभ-अशुभ योग और दोष के बारे में…
शनि से बनने वाले शुभ योग
राज योग: जन्मकुंडली में वृषभ लग्न में चंद्रमा हो, दशम में शनि हो, चतुर्थ में सूर्य तथा सप्तमेश गुरु हो तो राज योग योग बनता है। ऐसा जातक सेनापति, पुलिस कप्तान या विभाग का प्रमुख होता है। यह पराक्रमी होता है और अपने शौर्य के दम पर दुनिया को हैरान कर देता है।
दीर्घायु योग: शनि का संबंध आयु से होता है। यदि शनि लग्नेश, अष्टमेश, दशमेश व केंद्र त्रिकोण या एकादश भाव में हो तो व्यक्ति दीर्घायु होता है। यह अपनी पूर्ण आयु का भोग सुखपूर्वक करता है।
शश योग: जन्मकुंडली में शनि केंद्र स्थानों 1, 4, 7 या 10 में स्वराशि मकर-कुंभ का होकर बैठा हो तो शश योग का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक के आसपास नौकर-चाकर रहते हैं। यह किसी संस्थान, समूह या कस्बे का प्रमुख या राजा होता है। इसमें नैतिकता और नेतृत्व क्षमता दोनों होती है और यह सर्वगुण संपन्न् होता है।
पशुधन लाभ योग: यदि चतुर्थ स्थान में शनि के साथ सूर्य तथा नवम भाव में चंद्रमा हो, इसके साथ ही एकादश स्थान में मंगल हो जातक को पशुधन लाभ योग बनता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के पास अनंत गाय भैंस आदि पशु होते हैं और इसी से यदि अतुलनीय धन अर्जित करता है।
बहुपुत्र योग: यदि नवांश कुंडली में राहु पंचम भाव में हो और शनि के साथ हो तो बहुपुत्र योग का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक के बहुत से पुत्र होते हैं। इसे पुत्रों का पूर्ण सुख मिलता है और उनकी किस्मत का इसे भी सुख, सम्मान, धन प्राप्त होता है।
शनि से बनने वाले अशुभ योग
दुर्भाग्य योग: यदि नवम स्थान में शनि व चंद्रमा हो, लग्नेश नीच राशि में हो तो मनुष्य भीख मांग कर गुजारा करता है। यदि पंचम भाव में तथा पंचमेश या भाग्येश अष्टम में नीच राशिगत हो तो मनुष्य भाग्यहीन होता है।
अंगहीन योग: यदि जन्मकुंडली के दशम स्थान में चंद्रमा हो, सप्तम में मंगल हो, सूर्य से दूसरे भाव में शनि हो तो अंगहीन योग बनता है। जिस जातक की कुंडली में यह योग होता है किसी दुर्घटना में उसके अंग कट जाते हैं।
अपकीर्ति योग: यदि दशम स्थान में सूर्य और शनि एक साथ हो और इन पर राहु-केतु की दृष्टि पड़ रही हो तो अपकीर्ति योग का निर्माण होता है। इस योग वाले जातक की बुरी छवि बनती है। इसे हर प्रकार से अपयश मिलता है और इसके परिजन ही इसके खिलाफ हो जाते हैं।
सर्प योग
यदि तीन पापग्रह शनि, मंगल, सूर्य कर्क, तुला या मकर राशि में हो या लगातार तीन केंद्रों में हो तो सर्पयोग होता है। यह एक अशुभ योग है। इस योग के प्रभाव से जातक का संपूर्ण जीवन कष्टमय व्यतीत होता है। जीवन जहर बन जाता है और यह किसी भी प्रकार तरक्की नहीं कर पाता है।
बंधन योग
शनि कारावास यानी जेल योग का कारक भी होता है। यदि लग्नेश और षष्टेश केंद्र में बैठे हों और शनि या राहु से युति संबंध बना रहे हो तो बंधन योग बनता है। जिस जातक की कुंडली में बंधन योग होता है उसे निश्चित रूप से जेल की सजा काटना पड़ती है और बड़ी मुश्किल से ही जेल से बाहर आ पाता है।