अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण परमाणु परीक्षण को कैसे दिया अंजाम और इस पर पाकिस्तान को क्या दिया जवाब?
अटल बिहारी वाजपेयी ने लालबहादुर शास्त्री की तरफ से दिए नारे ‘जय जवान जय किसान’ में अलग से ‘जय विज्ञान’ भी जोड़ा. देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता किसी भी सूरत में मंजूर नहीं था. इसीलिए उन्होंने दुनिया की परवाह किए बिना राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण (1998) किया. इस परीक्षण के बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें ‘अटल’ बनाए रखा. पोखरण का परीक्षण वाजपेयी के सबसे बड़े फैसलों में से एक था.
वाजपेयी को इस बात का एहसास था कि अमेरिका परमाणु परीक्षण की भनक लगी तो दबाव आएगा. अमेरिका को भनक न लगने पाए इसके लिए परीक्षण से जुड़े इंजिनियर्स को भी सेना की वर्दी में वहां भेजा गया. उनकी रणनीति कामयाब रही. उन्होंने अमेरिका की सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी. देश को दुनिया के कुछ गिने-चुने परमाणु संपन्न देशों में शुमार करवा दिया.
उन्होंने अपनी कविता में कहा ‘मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं. वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है. वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है.’
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक भाजपा भारतीय जनसंघ के जमाने से ही परमाणु परीक्षण करने का समर्थन करती रही है. वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अटलजी पर लिखी गई अपनी किताब में लिखा है “1967 के चुनावों में उसके घोषणापत्र में भी यह मुद्दा शामिल था. लेकिन किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि वह अपने वादे को सरकार बनने के तुरंत बाद इतना जल्दी पूरा कर देगी.”
पाकिस्तान ने जब गौरी मिसाइल छोड़ी तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र ने वाजपेयी को परमाणु परीक्षण पर आगे बढ़ने की सलाह दी. ‘9 अप्रैल 1998 को वाजपेयी ने पूछा-कलाम साहब टेस्ट की तैयारी में आपको कितना वक्त लगेगा?, उस वक्त कलाम प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार थे.’ इस पर कलाम ने कहा ‘यदि आप आज आदेश देते हैं तो हम 30वें दिन टेस्ट कर सकते हैं.’ इस पर वाजपेयी बोले ‘तो आप लोग विचार-विमर्श कर लीजिए और ब्रजेश मिश्र से संपर्क में रहकर टेस्ट की तारीख फाइनल कर लीजिए.’
इसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मिश्र के साथ वैज्ञानिकों की मीटिंग हुई. 10 मई को टेस्ट करने की बात हुई थी लेकिन राष्ट्रपति केआर नारायणन 26 अप्रैल से 10 मई तक लैटिन अमेरिका की यात्रा पर थे. इसलिए 11 मई की तारीख तय हुई. परमाणु परीक्षण के बारे में वाजपेयी और ब्रजेश मिश्र के अलावा सिर्फ तीन वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी थी. उन्होंने अपनी सरकार के मंत्रियों को भी इस बारे में कोई खबर नहीं होने दी. पीएम ने 9 मई को तीनों सेना प्रमुखों को अपने आवास पर बुलाकर इसके बारे में जानकारी दी. सिर्फ एक दिन पहले ही कुछ कैबिनेट मंत्रियों को इसकी जानकारी दी गई.
परमाणु परीक्षण के बाद वाजपेयी ने कहा ‘मैं इस बात को स्पष्ट करना चाहता हूं कि भारत सदैव शांति का पुजारी था, है और रहेगा.’ परमाणु परीक्षण के अगले साल वाजपेयी 21 फरवरी 1999 को पाकिस्तान यात्रा पर गए.
वहां, हिरोशिमा, नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम पर लिखी गई ‘हिरोशिमा की पीड़ा’ नामक अपनी कविता पर कहा ‘जब पोखरण में एटमी विस्फोट करने का फैसला हुआ तो लोगों ने मुझे मेरी ही कविता की याद दिलाई थी. मैं हिरोशिमा गया था, मैंने नागासाकी का दृश्य देखा था. वहां बम चलाया गया, उसकी जरूरत नहीं थी. वहां लड़ाई खत्म हो गई थी. मित्र देश जीत गए थे. वह आत्मरक्षा के लिए चलाया गया एटमी हथियार नहीं था. आज भी वे लोग भुगत रहे हैं.’
अटल ने कहा ‘मेरी कविता का शीर्षक था हिरोशिमा की पीड़ा. एक शायर के दिल की पीड़ा थी. इसलिए जब एक गंभीर फैसला किया गया तब भी मेरा दिमाग साफ था और आज भी साफ है. हमें मिलकर एटमी वेपंस फ्री वर्ल्ड का निर्माण करना है. हम एटमी हथियारों को काम में लाएं इसका तो सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन इसके लिए दोस्ती का माहौल चाहिए.’